Thursday, June 14, 2012

ऐ क़ाश के ऐसा हो पाता...

ऐ  क़ाश के ऐसा हो पाता, सन्नाटे में मैं खो जाता,

ना याद मुझे कोई करता, ना याद मुझे कोई आता

ना मुझ तक कोई पहुँच पाता, दस्तक तक ना दे पाता 

दूर दूर तक मैं , बस मैं, कोई और नज़र तक ना आता 

ऐ  क़ाश के ऐसा हो पाता...
ऐ  क़ाश के ऐसा हो पाता...

होती बस मेरी आवाज़, जिसको बस मैं ही सुन पाता 

अपने दिल की हर धड़कन हर पल जैसे  मैं सुन पाता 

जज्बातों के दरिया से एक पल, मैं ज़रा सा ऊभर  पाता 

ऐ  क़ाश के ऐसा हो पाता...
ऐ  क़ाश के ऐसा हो पाता...

ऐ  क़ाश  के गर ये हो पाता, शायद खुद से मैं मिल पाता 

दिल में भरे सवालों के जवाबों से भी मिल पाता
मन की उलझी गाठों को थोडा तो सुलझा पाता 

ज़ख़्मी दिल को धीमे धीमे, थोडा सा सहला पाता 

ऐ  क़ाश के ऐसा हो पाता...
ऐ  क़ाश के ऐसा हो पाता...



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